पैसे छापने की मशीन होने के बावजूद भी सरकार अपनी मनमर्जी से पैसे क्यों नहीं छापती ?

दोस्तों कभी न कभी आप के दिमाग में भी यह ख्याल जरूर आया होगा की सरकार के पास जब अपनी खुद की करंसी छापने की मशीनें हैं तो सरकार क्यों नहीं खूब सारे पैसे छापती। आप सब को पता होगा के हमारे देश में कितनी गरीबी है, हर रोज कितने लोग भूखे पेट सोते हैं कितने किसान खुदकशी करते हैं। अगर सरकार खूब सारे पैसे छाप देती है तो सब के पास खूब पैसे आ जाएंगे और सब की गरीबी दूर हो जाएगी। मगर सरकार ऐसा क्यों नहीं करती। आज हम आप को इसी सवाल का जवाब देंगे।

दोस्तों सब से पहले हम एक फार्मूले को समझते हैं।
SUM OF ALL VALUES OF ALL GOODS AND SERVICES PRODUCED  =  SUM OF ALL CURRENCY PRESENT

इस का मतलब है की किसी भी देश में उत्पादन होने वाली कुल चीज़े जिसमें खेती से पैदा होने वाली चीज़े और दुसरे साधनों से पैदा होने वाली चीज़ों की कीमत उस देश में कुल छापी गई करंसी के बराबर होती है।

हम आप को कुछ उदहारण देते हैं, जैसे की किसी देश में कुल 5 लोग रहते हैं, और उनके पास कुल करेंसी 500 है। और उस देश में 50 किलो चावल पैदा होते हैं। तो उन 50 किलो चावल की कीमत 500 होगी मतलब की 10 रुपए किलो। अगर उस देश ने ज्यादा नोट छाप लिए और उन के पास 5000 रुपए हो गए तो चावल तो 50 किलो ही रहेंगे। जिस के कारण चावल की कीमत भी बढ़ जाएगी और अब वही चावल 100 रुपए किलो मिलेंगे। मतलब के जितने गुना आप ने नोट छापे उतनी ही महंगाई बढ़ जाएगी, जिस को हम Infilation जा मुद्रा स्फीति कहते हैं। जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ सकती है।

अब आप को एक और उदाहरण देते हैं अगर किसी देश ने बहुत सारे पैसे छाप लिए और हर एक आदमी के पास लाखों रुपए आ गए। और अब कोई आदमी अगर किसी दुकान पर कोई वस्तू लेने जाएगा जिस की कीमत पहले 50 रुपए थी और उसमें से दुकान वाले को 5 रुपए बचते थे। मगर अब वह दुकान वाला उस 5 रुपए के लिए उसे क्यों बेचेगा क्योंकी उस के पास भी तो खूब सारे पैसे हैं इसलिए पूरे देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ जाएगी।

आज तक ऐसा सिर्फ दो देशों ने किया है, जिसमें पहला हैं, जर्मनी

जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी ने बहुत से देशो से कर्ज ले लिया। मगर युद्ध में हुई हार के बाद जर्मनी कर्ज वापस करने में असफल रही। उसके बाद उन्होंने बहुत सारी करेंसी छाप दी और वहां की करंसी Devaluate हो गई।

ऐसा ही ज़िम्बाब्वे में हुआ वहां की सरकार ने Unlimited Currency छाप दी और उस का नतीजा यह हुआ के लोगो को ब्रेड और अण्डे जैसी चीज़ों को खरीदने के लिए भी बैग भर कर पैसे देने पड़ते थे। इस घटना को Hyperinflation in Zimbabwe के नाम से भी जाना जाता है।

दोस्तों किसी भी करेंसी की अपनी कोई कीमत नहीं होती उस की Exchange कीमत होती है की किस चीज़ के बदले उस करेंसी को देना है। देश में कितनी करेंसी छापनी है, इस का फैसला उस देश की GDP, Growth rate और बहुत सारे चीज़ों को देख कर किया जाता है और वहां की Centeral Bank इस का फैसला करती है। जैसे के हमारे देश में RBI है। 

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